हकीकत का आईना
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मुख्यमंत्री जी बड़े रौबदार अवाज में भाषण दे रहे थे ..भाईयों बहनों मैं आया तो था अपने प्रदेश का सबसे पिछड़ा गाँव देखने लेकिन यहाँ की तरक्की देखकर मेरा मन गदगद हो गया बहुत प्रफुल्लित हूँ मैं यह देख कर की जब मेरे राज्य के सबसे पिछड़े गाँव में इतनी तरक्की हुई है तो समुचे प्रदेश के तो कहने ही क्या ।
एक माह पहले ही मुख्यमंत्री जी के दौरे का ऐलान हुआ था इस छोटे से किसी भी तरह की सुविधा से वंचित इस विकास रहित गांव में जैसे अधिकारियों का ताता सा लगने लगा आनन फानन में सौचालय बना, चिकित्सालय का निर्माण हुआ, बीजली के खम्भे गड़े तार तन गया बड़ा सा ट्रांसफार्मर बैठ गया, गली-गली में पक्की सड़कें बन गई। विद्यालय, पंचायत घर, बारात घर, सामुदायिक भवन और नजाने क्या क्या, मुख्यमंत्री के दौरे का ऐलान क्या हुआ इस गांव के तो जैसे भाग्य ही खुल गये।
इतने कम समय में जो विकास के कार्य हुये थे वो वाकई काबिलेतारीफ थे। जो कार्य जिस विभाग के अन्तर्गत आया वहीं विभाग अति सक्रियता से अपने कार्य को अंजाम दिया। युद्ध स्तर पर हर एक कार्य समपन्न हुआ।
घोषणा के मुताबिक नियत समय पर मुख्यमंत्री जी आये और गाँव की सुव्यवस्थित स्थिति देख कर अत्यधिक प्रशन्न हुये। मंच से ही उस क्षेत्र के विधायक, जिला कलेक्टर, व अलग अलग विभागों से सम्बंधित तमाम अधिकारीयों को पुरस्कृत करने की घोषणा हुई।
गांव का हर एक इंसान स्तब्ध था गाँव क्या आस पड़ोस के कई गांवों के लोग इस युद्ध स्तरीय कार्य से अचंभित थे।
चार दिन की चांदनी फिर वही अंधेरी रात मुख्यमंत्री जी अपना दौरा समाप्त कर क्या गये विकास जितने तेजी से इस गाँव में प्रवेश किया था उससे कहीं चौगुने तिब्रता से पलायन कर गया बीजली के खंम्भे खड़े तार उतर गये। ट्रांसफार्मर विधायक जी के गांव चला गया जो भी संसाधन जिस किसी भी अधिकारी को अपने मन का लगा वो उठवा ले गये , फिर वहीं विराना।
गांव वाले विकास के इस तिब्रता और उसके तुरंत बाद के इस बेरुखी को पचा न पा रहे थे किन्तु कर भी क्या सकते थे ।
उधर अखबार मुख्यमंत्री जी के कहे शब्दों से पटे पड़े थे ,प्रदेश का सबसे पिछड़ा गाँव भी शहरों से कई कदम आगे। इस पार्टी की सरकार ने विकास की एक नई गाथा लिखी।
सरकार की उपलब्धियों में भी इसे बढ चढ कर दिखाया गया। सभी ग्राम वाशी खुद को ठगा हुआ महसुस कर रहे थे जैसे उनका हर तरफ मजाक बना दिया गया हो।
गाँव में अब विद्यालय था किन्तु शिक्षार्थ शिक्षक व छात्र नदारद थे, चिकित्सालय था चिकित्सकीय उपकरण व चिकित्सक नहीं थे सौचालय तो बन गया किन्तु उसमें न पानी आता और नाही सौच जाता , सामुदायिक भवन व बारात घर पे विधायक जी का कब्जा हो गया। पंचायत भवन तो जन्मजात मुखिया जी की ही परिसंपत्ति थी।
विकास के नाम पे बच्चों के खेल का एक छोटा सा मैदान था वो भी छीन गया सामुदायिक भवन व बारात घर उसी में जो बने थे।
मित्रों यह कहानी किसी एक गाँव, कस्बे या शहर की नहीं अपितु हमारे देश के हर जगह की है नजाने ऐसे कितने ही विकास के हम गवाह बन चूके है किसी भी मंत्री, मुख्यमंत्री या फिर प्रधानमंत्री का ही दौरे का जैसे ही ऐलान होता है वहाँ के अधिकारी पूर्ण तनमयता के साथ विकास कार्य में जुट जायेंगे देखते ही देखते उस परिक्षेत्र की दशा व दिशा बदल जाती है और जैसे ही दौरा समाप्त हुआ उस क्षेत्र को फिर से बदहाली के अंधेरे में झोंक दिया जाता है और हम सभी जनमानस ठगा सा राजनीति के इस कुत्सित खेल को विवस्ता पूर्वक देखते रह जाते है कुछ भी तो नहीं कर पाते …….।
किन्तु अब समय आ गया है ऐसे विकास करने वालों से दो दो हाथ करने का …
जय हिन्द, जय भारत
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”