‘हक़’ और हाकिम
हक़ मांग रहा मजदूर,
उन्हें चाहिए इतनी मजदूरी
जिससे करें जरूरत पूरी,
रोटी कपड़ा और मोकाम ।
किसान मांगता अपना हक़
सस्ती उर्वर ऊंचा दाम
विद्यार्थी सब मिल मांग रहे हैं
अच्छी शिक्षा हांथ को काम
कर्मचारी भी मांग रहा
वेतन बृद्धी पेंशन प्लान
मैं मांगता सबका हक़
वापस कर दो मेरा हक़ ।
‘सर्प’ मांग रहे हैं हक़
उन्हें चाहिए लम्बे पांव
तोता मांग रहा है हक़
मत काटो तुम उनकी डाल
जनता भी तो मांग रही है
वापस करो स्वच्छंद विचार
टिड्डी मांगतीं अपना हक़
छोड़ो सुरक्षित बच्चा उनका
भूनो मत तुम उन्हें घास में !
बिल्ली मांगतीं चूहे अपने
मत मारो तुम विष से उनको,
बेटी भी तो मांग रही है
मारो मत तुम उसे पेट में
छोड़ो सुरक्षित मॉं का गर्भ !
पर्वत कहता रहने दो
नदियां कहती बहने दो
सागर कहता थहने दो
बादल कहता घिरने दो,
मैं कहता हूं
मत छेड़ो तुम इन्हें रात – दिन,
पर्वत से हवाएं मुड़ने दो
नदियों को कल – कल करने दो
समुद्र समीर को चलने दो
बादल को खुब घिरने दो।
बगुले मांगते केंचुए अपने
ज़हर न घोलो खेतों में
गिद्ध मांगते मुर्दा डांगर
कब छोड़ोगे भक्षण उनका
जीव- जंतु हैं मांग रहे
जी लेने दो उन्हें उम्र भर,
शेर बोलता
मुक्त करो तुम उसे जेल से
लौटा दो तुम उनका देश
मैं बोलता बदलो खुद को
न बदलो तुम केवल भेष !!
~आनन्द मिश्र