हक़ीक़त
जो हम देखते हैं वो हमेशा सच नहीं होता ,
जो हम समझते हैं वो भी हमेशा सच नहीं होता ,
सच को जानने और समझने के लिए नज़रिए की
जरूरत होती है ,
नज़रिए को तराश़ने के लिए इल्म़ की
ज़रूरत होती है ,
इल्म़ को जगाने के लिए ज़ेहनी मशक़्क़त की
ज़रूरत होती है ,
जो सच और झूठ की असलियत में फ़र्क कर सके ,
ज़ाहिर हालातो और सबूतों की बिना पर किसी मुकम्मल नतीज़े पर पहुंच सके ,
जो बयाँ किया जाता है और जैसा दिखाया जाता है ,
उसके फ़रेब से खुद को अलग कर सके ,
अपनी सोच को फ़िरक़े की सोच से अलग कर सके ,
भरम के सराबों में भटकने के सिवा, हक़ीक़त की राह पर अपने कदम रख सके।