हंसती होगी आत्मा उन फिरंगी कि,
हंसती होगी आत्मा उन फिरंगी कि,
जिनके गुलामी से पाने को छुटकारा,
ना जाने कितने दर्द सहे हमारे पुर्वज ने।
कहते होंगे हंस हंस कर हर घड़ी,
हमारे पितरों से,
हमसे तो आज़ाद करा लिया राष्ट्र अपना,
पर ,क्या संभाल पाए तुम अपने घर को,
देखो, महजब के नाम पे पहले ही टुठ चुके तूम,
अब और क्या टुकड़े होंगे तेरे राष्ट्र का।
देखो, जरा झांको नीचे,
क्या बबाल मचा तुम्हारे घर में,
देखो कैसे लड़ रहे अपने अपनो से,
हा – हा कैसा अखण्ड देश है तेरा,
आंख मूंद विश्वास करती,
झुठी अफवाहें पे।
बड़ा अहिंसा का पाठ पढ़ाते थे दुनिया को,
और,
खुद पशुओं के तरह लड़ रहे हैं।
ज्यादा मत हंस, शायद दुःख होगा तुम्हें बड़ा सुनके
झगड़े तो हर घर में होते,
पर अपने ही बच्चों को घर से भगाता कौन है,
जरा देखो अपना घर में भी,
कहीं हमारे बदोलत तो नहीं चल रही।