हँसो और हँसाओ तुम
पाँच तत्त्व का तन बना,पाँचों पावन रूप।
विडंबना मन की रही,हुआ नहीं अनुरूप।।
मन की अच्छी सोच ही,बाँधे सबको बंध।
जैसे मिट्टी खींचती,सौंधी लिए सुगंध।।
जिसके मन उत्साह है,उसके पूरे काज।
एक बहाना ना करे,पीछे चले समाज।।
बना चले जो योजना,पाए वो आनंद।
देता सबको रस यहाँ,जैसे कविता-छंद।।
तनाव मानव का करे,पागल जैसा हाल।
उलझा ऐसे वो रहे,जैसे मकड़ी-जाल।।
चलो समय के साथ तुम,जैसे ये दिन रात।
संकट सारे दूर हों,डरने की क्या बात।।
प्रीतम हँसके तुम रहो,खिले सुबह ज्यों धूप।
फूलों-सम जन-गण हँसे,मौसम सरिस स्वरूप।।
आर.एस.प्रीतम
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