*हँसना चाहूँ तो रो पड़ता हूँ*
हँसना चाहूँ तो रो पड़ता हूँ
***********************
हँसना चाहूँ तो रो पड़ता हूँ,
जीने की चाहत में मरता हूँ।
फ़िजा के फूल मन नहीं भाए,
वक्त का पहिया चलता जाए,
निडर हो कर हरपल डरता हूँ।
जीने की चाहत में मरता हूँ।
बादल बनते और झड़ते हैँ,
फिर भी न धरा पर बरसते है,
खिलने की बजाए सड़ता हूँ।
जीने की चाहत में मरता हूँ।
जुल्फों के बादल घने-घनेरे हैँ,
सीधे कंधों पर आन बिखेरे हैँ,
गैसुओ की छाया में रहता हूँ।
जीने की चाहत में मरता हूँ।
जाने दिल की तमन्ना साकी है,
जाम होठों का पीना बाकी है,
आगे बढ़ कर पीछे हटता हूँ।
जीने की चाहत में मरता हूँ।
गम ए जुदाई हमें मर डालेगी,
तन्हाई आखिर ही संभालेगी,
चलते-चलते यूँ ही ढलता हूँ।
जीने की चाहत में मरता हूँ।
दो दिन को खेल है मनसीरत,
ये मक्का-काशी सभी है तीर्थ,
जीती बाज़ी अन्त में हरता हूँ।
जीने की चाहत में मरता हूँ।
हँसना चाहूँ तो रो पड़ता हूँ,
जीने की चाहत मे मरता हूँ।
***********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)