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3 Aug 2020 · 2 min read

स हा रा !!

जब जीवन में हताशा भर जाए,
मन उच्चाट सा हो जाए,
जीने की इच्छा मिट जाए।

तब कांधे पर कोई हाथ धरे,
और मुस्कान भरे लहजे में कहे,
क्या बात हुई है भये,
क्यों चेहरा तुम्हारा उदास है,
बतलाओ मुझको क्या बात है,
मैं क्या कुछ कर सकता हूं।

तब निराश व्यथित वह टुटा शख्स,
उसके सीने से लगा कर,
अपना वक्ष अस्थल,
अश्रुधार को बहाते हुए,
अपने दुःख-दर्द का अहसास कराते हुए,
सब कुछ उंडेल दे,
जिससे वह जूझ कर व्यथित हुआ है।

किन्तु ऐसा कोई करता नहीं है,
इसी लिए तो निराशा से भरे पड़े,
एकांकी महसूस करने लगते हैं,
और फिर उसी उदासी के कारण,
अनर्थ कर बैठते हैं,
लेकिन इधर वह लोग,
जो दुख व्यक्त करने को आए हैं,
बात ही बात में, उसे ही दोषी ठहरा कर,
उसे निकम्मा, और कायर कह कर,
जलील करने लगते हैं।

और साथ ही, देखा जाए तो,
ऐसे ही लोग,
ज्यादा मर्मज्ञ और हितैषी,
होने का ढोंग दिखा कर,
समाज में अपनी पैठ बना लेते हैं,
इन्हें किसी के दुखी होने पर,
कोई दुख नहीं होता है,
बस उसके दुख में शामिल होने की रश्म अदा करते हैं।

यदि कोई समझे किसी के दुख का अहसास,
और दे सकें उसका साथ,
तो फिर कोई निराश होकर,
नहीं बढाएगा कदम,
अतिवाद की ओर,
बचाया जा सकेगा,
ऐसे अनेकों को,
जिन्हें नहीं मिलता सहारा,
******
जब टुटे होते हैं,
खो देते हैं अपना भरोसा,
अपने से, अपनों से,
और इस निष्ठुर जमाने से,
जो स्वयं को ,
इस सभ्य समाज का, कहलाते हुए ,
दंभ भरते हैं।

Language: Hindi
3 Likes · 10 Comments · 411 Views
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