स़फर
जिंदगी के स़फर में हम बढ़ते रहे ।
जब तब मिली अपनों से मिलन की खुशियांँ।
तो कभी अपनी च़ाहत को खोने का ग़म ।
कभी व़क्त की कऱवट से निखरती तक़दीर ।
तो कभी गैरों की साजिशों से उलझती तदबीर ।
कभी मंज़िलों को हास़िल करने का जुनूऩ ।
तो कभी अपनी ख़ुशियाँ औरौं पर लुटाने का सुक़ून ।
कभी हालातों की मसरू़फ़ियत ।
तो कभी ज़ेहन में खालीपन की माय़ूसिय़त ।
कभी जज़्बातों की लहरों में डूबती इंसानिय़त ।
तो कभी बदले की आहट लिए कौंधती हैव़ानिय़त ।
कभी सब कुछ जज्ब़ किए ग़म को भुलाने की कोश़िश ।
तो कभी बगावत से सब कुछ बदल देने की क़शिश़ ।
रफ़्ता रफ़्ता दौर गुज़रते रहे कभी रिश़्ते बनते रहे बिगड़ते रहे ।
इन्हीं दर पल दर या़दों को लिए हम लम़्हों के स़फर में बढ़ते रहे ….बढ़ते रहे…..।