सफ़र
सफ़र
———–
खुशी और गम के छोर
उनके बीच वक़्त के
नाजुक धागे से बंधी
कुदरत का नायाब तोहफ़ा
खूबसूरत ज़िंदगी………
वक़्त के साथ
खुलने और बंद होने वाले
बचपन या जवानी
या बुढापे के दरवाजे
उनसे गुजरकर
अपना सफ़र
पूरा करता इंसान…………
सफर का एक छोर
शोर से भरा
दूसरे छोर पर खामोशी
और उससे डरता इंसान
इंसानी हर हरकत पर
नज़र रखते हुए
वक़्त कराता है पूरा
इंसानी सफ़र…………..
— सुधीर केवलिया