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31 Oct 2020 · 1 min read

सफ़र ज़िन्दगी का न जाना हुआ

सफ़र ज़िन्दगी का न जाना हुआ
ये दुनिया फ़क़त इक ठिकाना हुआ

नहीं रोक सकता कोई ये सफ़र
मुसाफ़िर सफ़र पर रवाना हुआ

हवाओं का जो मोड़ देते हैं रुख़
उन्हीं का ये सारा ज़माना हुआ

गुज़रता रहा वक़्त रफ़्तार से
हक़ीक़त जो थी वो फ़साना हुआ

न काबू रहा दिल पे उस पल कोई
अचानक तुम्हारा जो आना हुआ

कभी जीतते थे इसी चाल से
वही दाव अब तो पुराना हुआ

बचा के रखा था जिसे चाव से
वही दिल वफ़ा का निशाना हुआ

दबे पांव बोला था जाना नहीं
मगर वो गया ये डराना हुआ

जो ‘आनन्द’ आँसू बहा ही नहीं
वही अश्क़ ढलकर तराना हुआ

– डॉ आनन्द किशोर

2 Likes · 279 Views
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