सफ़र बस का
अपने बस के सफर के अनुभवों को शब्दों में पिरोने का
अतिलघु प्रयास
सफ़र बस का
कितना सुहाना ,
अद्धभुत मनोहर
थोड़ा रिस्की किन्तु,
मध्यम वर्ग की
है ये धरोहर
दचके लेता हुआ ये
सफर है
लंबे समय पर
आती डगर है
कभी मिलती सीट
कभी खड़े खड़े
हो जाता
सफर है
कोई सुनकर
गाना तो
कोई
खेलकर गेम
कोई फेसबुक चलकर
कोई
व्हाट्सएप्प
चैटिंग
से काटता
सफर है
लंबे रुट की
बसों का
गजब सा
सफर
है
सागर हो जाना
तो
मिलती टिकिट
है
रायसेन वालो
का तो
खड़े खड़े ही
आ जाता
नगर है
क्या करें
अपडाउन बालों
की है ये मजबूरी
बचता
समय है
अपनी अपनी मंजिल
का सब
देते
बराबर किराया
उठो , सोचो
“दीप”
होता क्योँ ऐसा
कोई खड़ा
कोई बैठा सीटों पर
जारी…..