सड़क किनारे तड़प रही थी मरकर वो लाशें भी
सड़क किनारे तड़प रही थी मरकर वो लाशें भी
मदद की गुहार लगा सड़ गयी थी,वो लाशें भी
भीड़ थी चारों तरफ़ डर का सा माहौल था
ज़िंदा था इंसा मग़र उनका कहां कोई मोल था
अखबारो के मुखपृष्ठ में छपी ख़बर थी वो
पाठकों के रोंगटे खड़े करने वाली छोटी सी झलक थी वो
लोगों ने बड़े जोश में वीडीयो बनाई थी
शेयर की थी फोनों में और सबको दिखाई थी
इंसान तो ज़िंदा थे,इंसानियत कहां बच पाई थी
मर गया था इंसा,चर्चा बाकी की लड़ाई थी
कारण गिनाने वाले विद्वानो की भीड़ आयी थी
न्यूज़ चैनल के माध्यम से वक्ताओं ने दी सफाई थी
पोस्ट मार्टम किया तो पता चला भूख से लड़ाई थी,
कई दिन के भूखे ने, जान से कीमत चुकाई थी
मर जाने के पश्चात एक बात समझ में आई थी
भूख से मरने वालों की कोई नही दवाई थी
भूपेंद्र रावत
22।04।2020