स्वीकारोक्ति :एक राजपूत की:
स्वीकारोक्ति :एक राजपूत की:
निज जाति गुणगान ये सारा ,क्यूं कर मैंने ना स्वीकारा।
राजपूत हूं बात सही है, पर मुझमें वो बात नही है।
क्या वीर थे वो सेनानी, क्षत्रियों की अमिट कहानी।
महाराणाप्रताप कुंवरसिंह क्या थे योद्धा स्वअभिमानी।
प्रभु राम जीवन अध्याय , प्राण जाय पर वचन न जाय।
आज समय की मांग नहीं है सत्यनिष्ठ कोई बन पाय।
शोणित में अंगार नहीं है सीने में हुंकार नहीं है।
राजपूत के वचनों में जो होता था वो धार नहीं है।
नियति का जो कालचक्र है सर्वप्रथम अब हुआ अर्थ है।
वर्तमान की चाह अलग कि शौर्य पराक्रम वृथा व्यर्थ है।
निज वाणी पर टिक रह जाना आज समय की मांग नहीं है।
वादे पर हीं मर मिट जाना, आज समय की मांग नहीं है।
आज वक्त कहता ये मुझसे , शत्रु मित्र की बात नहीं है।
एक आचरण श्रेयकर अब तो,अर्थ संचयन बात सही है।
अर्थ संचयन करता रहता , निज वादे पे टिके न रहता।
राजपूत जो धारण करते ओज तेज ना रहा हमारा।
निज जाति सम्मान था प्यारा, पर इसकारण ना स्वीकारा।
अजय अमिताभ सुमन