स्वास विहीन हो जाऊं
न्याय विहीन
पर्याय विहीन
समुदाय विहीन
चरित्र विहीन
इत्र विहीन
संकल्प विहीन
विकल्प विहीन …….
इस फिज़ा में….
अब जी करता है…
स्वास विहीन हो जाऊं
दूर…….
कहीं ……
खामोश
निर्झर
सन्नाटे में
खो जाऊं।
पर
समस्याएं दो हैं ………
एक
मेरी इस
निष्प्राण
काया
का
क्या होगा
हिन्दू कहेगा
जल्दी से जला दो
कोई कहेगा
बिजली की भट्टी
में गला दो
इसाई
ताबूत में
दबाना चाहेगा
कोई पानी में
बहाना चाहेगा
तो मुस्लिम
मिट्टी में दबाना चाहेगा
और पारसी
पक्षियों को
खिलाना चाहेगा
यह सब जन्म देगा
इक
नये
द्वन्द को
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______________
दो
जो कुछ
इस धरा से पाया है
उस का क्या होगा…………!
कोई लूटना चाहेगा
कोई बाँटना चाहेगा
हर कोई
अपना हक
उस में से
छांटना चाहेगा
जिस पर
वास्तव में
किसी का
हक नहीं ………
सब ‘उसका’ है।
उस का क्या करूं !
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सोचा
राष्ट्र के नाम कर दूं
पर
राष्ट्र है कहाँ
दिमाग घुमा लिया
सब जगह………..!
राष्ट्र तो
कब का लूट लिया
राजनीतिक…..
धार्मिक….
सामाजिक….
और
साम्प्रदायिक
लुटेरों ने।
कोई इन समस्याओं का
हल बता दे
.
.
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तो मैं
शान्ति से ……………
युक्त हो जाऊं
इस जीवन से ………….
मुक्त हो जाऊं
और
बताने वाले का
जन्म जन्मान्तर का
भक्त हो जाऊं।