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2 May 2018 · 2 min read

स्वार्थ

लघु कथा
शीर्षक-स्वार्थ
=============
“सज्जन भाई साहब ऐसा कैसे कर सकते है इतने खुदगर्ज कैसे हो सकते है कुछ तो ख्याल रखा होता अपनी बात का…. “- दफ्तर से आते ही मैं अपनी पत्नी के सामने बडबडाने लगा।
‘आखिर हुआ क्या? ‘
‘कुछ नहीं यार ,,,’
‘कुछ तो’
‘ तुम तो सब जानती हो रजनी … कि हमारी बेटी की शादी की तिथि नजदीक ही आती जा रही है ओर लडके वालों की फरमाइसे कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। इसी समस्या के हल निकालने के लिए मैंने सज्जन भाई साहब से कुछ उधार के लिए कहा था, लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने मना कर दिया,,,, कितने स्वार्थी होते हैं लोग , जब अपनी गरज पड़ती है तो सब कुछ करने को तैयार रहते हैं और जब मैंने कुछ मदद माँगी तो पीठ दिखाते हैं। अब मैं क्या करूँ? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा..’
‘आप परेशान न होंइये, सब अच्छा ही होगा, अगर आप माने तो एक बात कहूँ ?,,,,, ‘
‘क्या ?’
‘ ऐसा करें कि हम भी स्वार्थी बन जाते हैं और अपनी बेटी की शादी किसी गरीब के यहाँ करते हैं , शादी भी बहुत साधारण तरीके से करेंगे, जितना रुपया बचेगा उतने बेटी-दामाद के नाम बैंक में जमा करवा देंगे, भविष्य में उनके काम आएंगे। कम से कम ऐसे दहेज लोभियो से छुटकारा मिलेगा… ओर मेरी बेटी को सम्मान भी…. ।
नहीं बनना हमें बड़ा, .. दहेज के दानव का संहार करने के लिए हम भी स्वार्थी बन जायें तो क्या हर्ज ? .
सोचते -सोचते मैंने पत्नी के विचार को क्रियान्वित करने का मन बना लिया ।
■■■■
राघव दुबे
इटावा (उ०प्र०)
8439401034

Language: Hindi
684 Views
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