स्वाभिमान या अभिमान
स्वाभिमान कदाचित चुपचाप
बन जाता अभिमान
अन्तर होता है सूक्ष्म
दोनों भावनाओं में
बदलेंगे कब स्वभाव
सीख लें इसका ज्ञान।
अनीति और अधर्म
जब आरोपित हो
किसी भाँति
किञ्चित संकोच नहीं
जागे तब स्वाभिमान।
गलती पर यदि कहीं
जो कर दे कोई सुधार
उसमें न देखो दोष
उसका दो धन्यवाद।
न आहत हो स्वाभिमान।।
है ये विचित्र बात
समझे न सरल बात
पल में कब स्वाभिमान
बन जाता है अभिमान।
दूसरे को झुकाना ही
होता न स्वाभिमान।।
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