स्वाभिमान की चिड़िया
स्वाभिमान की चिड़िया भी लगती बिलकुल अलबेली है।
सबको अच्छी लगती है पर उड़ती निपट अकेली है।
नाज़ुक इतनी होती है, बातों से घायल होती है।
वो बात अलग है सब दुनियाँ इसकी कायल होती है।
कोई पसन्द कब करता इसको बिलकुल न्यारी रहती है।
मैं बस मैं वाला दाना यह हर पल चुगती रहती है।
सभी परिंदे धीरे धीरे छोड़ इसे चल जाते है।
पास पटकता कोई नहीं ,नहि पास कोई आते है।
जीवन का रस पीना इसको बिलकुल अच्छा नही लगता।
इसीलिये तो भरी भीड़ में इसको रहना तन्हा पड़ता।
कलम घिसाई