स्वाभिमानी भरत पुत्र
दो घनाक्षरी उस स्वाभिमानी भरत पुत्र के लिए,जिसने फुटबाल खिलाड़ी बनने का सपना इसीलिए छोड़ दिया कि उसे तुलसी माला को गले से निकालने के लिए कहा गया।
खेल भाव खेल भाव रहता है किंतू बोलो!
खेल खेल में ही कैसे धर्म यूंही भूलता?
खेल भाव रखकर खेल जीतने के लिए!
कृष्ण उदघोष बिन वक्ष कैसे फूलता?
तुलसी माला खंड खंड करके तो पाता डोर!
किंतु धर्म डोर पे वो झूला कैसे झूलता?
माला सिर्फ माला नहीं धर्म का प्रतीक है जी!
स्वार्थहित धर्म पुत्र धर्म कैसे भूलता?
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खेल खेलने के लिए खेल भाव चाही किंतु!
हिंदू राष्ट्र पुत्र पहचान कैसे भूलता ?
दिव्य माला तुलसी का कंठ पे जो धारते हैं!
धर्म ने सिखाया वो विधान कैसे भूलता ?
छोड़ने को छोड़ देगा वो समग्र विश्व किंतु!
भारती का मान स्वाभिमान कैसे भूलता ?
दधीचि से पाया ज्ञान अस्थि दान देने का जो!
मौका देख देना बलिदान कैसे भूलता?
©® दीपक झा रुद्रा