स्वाभिमानी किसान
स्वाभिमानी किसान
“नमस्कार मैनेजर साहब।” मैनेजर के चैंबर में घुसते हुए रामलाल बोला।
“नमस्कार, आइए-आइए, रामलाल जी। बैठिए। बताइए क्या सेवा करूँ आपकी ?” गाँव के मँझोले किसान रामलाल जी को मैनेजर साहब अच्छे से पहचानते थे। पिछले तीन साल से हर महीने की ठीक सात तारीख को ही किश्त जमा करने जो आता है।
“एक जमा पर्ची दे दीजिए, किश्त जमा करनी है।” रामलाल विनम्रतापूर्वक बोला।
“अभी कुछ दिन रूक जाओ रामलाल। सरकार सभी किसानों का कर्जा माफ करने वाली है।” मैनेजर ने उसे समझाते हुए कहा।
“क्या मैनेजर साहब आप भी, कैसी बात करते हैं। अभी की किश्त तो जमा कर लीजिए। जब होगा माफ, तब देख लेंगे।” रामलाल बोला।
“रामलाल जी, आपके ही भले के लिए बता रहा हूँ। सचमुच सरकार किसानों का कर्जा माफ कर रही है।” मैनेजर ने बताया।
“मैनेजर साहब, मैं मोहताज नहीं, सक्षम हूँ। मैंने इस विश्वास के साथ कर्जा लिया था, कि लौटा दूँगा। माफी की उम्मीद पर कर्ज नहीं ली थी। लाइए, दीजिए एक पर्ची।” उसने आगे हाथ बढ़ाते हुए कहा।
आज मैनेजर खुद को रामलाल के सामने बहुत ही छोटा महसूस कर रहा था। वह अपनी जिंदगी में पहली बार किसी स्वाभिमानी किसान से मिल रहा था। अपनी टेबल दराज से एक फॉर्म निकाल कर देते हुए बोला, “लीजिए फॉर्म। काश ! सारे किसान आपकी तरह होते।”
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़