स्वस्थ समाज
उठ जाओ मेरे लाल नींद से, सारे बच्चे जाग गए ।
भोर भई है हवा सुहानी, तारे सारे भाग गए ।।
रात का राजा चंदा छिप गया, दिन का सूरज जागा है ।
सैर सपाटे को चलना है, तिमिर रात का भागा है ।।
शुद्ध हवा से सेहत बनती, मस्तक उज्जवल बनता है ।
आलस में पर सोता रहे, तन उसका निर्बल बनता है ।।
जब सैर सपाटा कर ही लिया, कुछ व्यायाम जरूरी है ।
शौच दंत क्रिया करके, अब स्नान की बारी है ।।
स्वस्थ शरीर हमें रखना है, आओ थोड़ा खा पी लो ।
साफ-सफाई से तैयारी, स्कूल चलो बस्ता ले लो ।।
परहेज रखो गंदी चीजों से,वरना तुम बीमार पड़ो ।
ताजा खाना भरे विटामिन, मीठे फल रसदार चखो ।।
दूध दही की उचित मात्रा, नियत समय से लेते रहो ।
स्वभाविक कर्मों को नित कर, नींद रात में लेते रहो ।।
समय से सोना समय से उठना, नियम हमारा बन जाए ।
छुट-पुट बीमारी दूर भगेंगी, हृष्ट-पुष्ट तन बन जाए ।।
तन स्वस्थ तो मन भी सुंदर, उच्च विचार प्रबल होगा ।
संतोषी उन्नत परिवार बनेगा, न समाज निर्बल होगा ।।
सुघड़ समाज ही बने इकाई, इक सूत्र देश बंध जाता है ।
प्रगति क्रांति हर ओर पनपती, देश वही स्वर्ग कहलाता है ।।