स्वर्णिम अध्याय है माँ
आदि श्रृष्टि का स्वर्णिम अध्याय है माँ
करुणा-ओ-ममता का पर्याय है माँ
धर्म-कर्म की सारगर्भित व्याख्या में
जीवन गीता का स्वाध्याय है माँ
वो द्रवित होती संतानों के दुःख में
तो सुख में भी नयन छलकाय है माँ
तू भक्ति, तू शक्ति, तू ही द्वार मुक्ति
ऋषि-मुनि भी तुझसे सब कुछ पाय है माँ
विघ्न कटे तेरे आशीष वचनों से
तू सदैव मंगल रूप उपाय है माँ
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कवि: महावीर उत्तरांचली, नई दिल्ली