स्वर्ग
जिसे कभी देखा ही नही,
उसकी लालसा में देवो को मनाया।
लेकिन माँ के चरणो का स्वर्ग,
किसे भी नजर नही आया॥
उस बैकुंठ में तो हर एक के लिए,
चार प्रकार की मुक्ति है।
लेकिन माँ के आँचल मे तो,
चार बेटो के लिए भी एक ही आधार है॥
उस बैकुंठ से तो पुण्य खत्म पर,
जीव ब्रह्म में फिर आ जाता है।
लेकिन माँ के वातसल्य से तो,
अखूठ सुख जीवन भर पाता है॥
आपका अपना
लवनेश चौहान
बनेड़ा (राजपुर)