स्वर्ग से उतरी बरखा रानी
स्वर्ग से उतरी बरखा रानी
झम झम झम झम करती
चांदी की पैजनिया पहने
छम छम छम छम करती।
ढोल नगाड़े पीटों भैया
भर गए सब ताल तलैया
ताता ताता थैया थैया
जुड़ा गई रे धरती मैया।
चिल-चिलाती धूप चली रे
सिकुड़ी- सिमटी दौड़े सरपट
चम चम चम चम बिजली चमकी
घिरा घन जब उमड़- घुमड़कर।
‘किसानों का भाग जगा रे ‘
चिड़ियां चहकी फुंगी पर
नाचों नाचों तुम भी प्यारे
बूंदे बरसी वसुंधरा पर ।
फूल खिले हैं डाली -डाली
महक रही क्यारी -क्यारी
मन – मयूर अब नाचा है रे
भौरा भी अब इतराता है रे ।
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स्वरचित : घनश्याम पोद्दार
मुंगेर