स्वर्ग -प्रवेश
सामने स्वर्ग के द्वार के
खड़ा था एक प्रहरी
लैस अस्त्र -शस्त्र से
आया तभी एक धर्म -ध्वज
व्यवस्था सी देता हुआ
खोल दो फाटक
लीन होना चाहता हू परमपद मे
मैने यावज्जीवन-
किया है धर्म -ग्रन्थो का गहन अध्ययन
खड़े हो जाओ उधर
निर्णय मिले जब तलक
धर्म ग्रन्धो का अध्ययन
किया गया श्रद्धा-भाव से
या प्रदर्शन मातृ था तुम्हारा प्रयोजन
आया तभी पहरुआ कर्मकाण्ड का
बोला- जाने दो अन्दर मुझे
मैने अपने सारे जीवन
किये है व्रत उपवास और जप-तप
हो जाओ खड़े उधर
जान्च होवे लेखे -जोखे की जब तलक
आया तभी एक धनहीन किसान
बोला मिलेगी अन्दर जाने की इजाजत मुझे
क्यो , किया है कोई काम जिससे मिले स्वर्ग-धाम?
नही ऐसा तो कोई काम नही हुआ मुझसे
सेवा की है भाई-भतीजे बाल-गोपाल की
खेती की है जम कर
जप कर माला सदा नंद लाल की
पेट काटकर रोटी दी है
द्वार आए अतिथि को, अनाथ को
कर्मरत स्थिति मे अनजाने मे
अनेक बार मारा है अनेक को
देखते ही देखते, खुल गया द्वार
और पहुच गया किसान-ब्रहमरन्ध्र के पार!