*स्वयं से मिलन*
स्वयं से मिलन
(कोरोना/लॉकडाउन)
आपदा के इस प्रहर में,
घर से बाहर में जो झांकी,
गली सुनसान राहें वीरान,
जाना अनजाना कोई,
साया नजर नहीं आया।
मैं सिहर कर लौट आई
मन मेरा विचलित हुआ।
मैं अचानक मन के अंदर
की गली में मुड़ गई,
कुछ कदम बढ़ते ही पाया
है बहुत हलचल यहां।
भूले संगी ,बिछड़े साथी,
काली यादें , उजले सपने,
दुखते पल, हंसते क्षण,
सभी खड़े थे मुझसे मिलने।
मैं सिहर कर ठिठक गई,
मन मेरा विचलित हुआ।
और आगे बढ़ चली मैं,
मन की उस संकरी गली में,
दूर उजला कण दिखा,
बस खिंचती चली गई मैं।
बिंदु आकर लेता गया,
रौशनी बढ़ती गई ,
मैं नहा गई रौशनी में,
मन भी उजला हो गया।
और कुछ बाकी नहीं,
सब साफ सुथरा हो गया
शांत सब कुछ पारदर्शी
शायद यही वह ध्यान है,
शायद यही तय स्थान है।
मैं अचंभित लौट आई,
मन अजब सा शांत है
मन अजब सा शांत है।।
आभा पाण्डेय
27.3.2020