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24 Nov 2024 · 1 min read

स्वयं में संपूर्ण

स्वयं में संपूर्ण
कैसे चोट दोगे उस इंसान को,
जो स्वीकृति का मोहताज नहीं,
जिसे बुलावे की परवाह नहीं,
न शामिल होने का ग़म,
न किसी गिनती में आने का भ्रम।
वह जानता है अपना स्थान,
अपने भीतर उसका है संसार।
दुनिया चाहे नजरअंदाज करे,
वह फिर भी मुस्कान से भरा है।
न मान का मोह, न अपमान का डर,
वह तो चलता है अपने पथ पर।
हर ठोकर को उसने साथी बना लिया,
हर तिरस्कार को उसने आशीर्वाद मान लिया।
तुम्हारे शब्द उसके दिल को नहीं चीर सकते,
तुम्हारी अनदेखी उसके हौसले को नहीं तोड़ सकती।

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