स्वयं मार्ग अपना चुनें
स्वयं मार्ग अपना चुनें
नदिया हो या नारि हमेशा, दोनों है गतिमान।
रहें निरंतर दोनों बहती, दोनों एक समान।
दोनों ही हैं जन्म दायिनी,
दोनों जीवन दात्री।
दोनों जीवन सिंचित करतीं, करती है ज्यों धात्री।
बाधाओं से कभी न डरतीं,
दोनों आगे बढ़तीं।
लक्ष्य प्राप्ति की ओर हमेशा, सतत् यत्न वह करतीं।
निर्मल, पावन हैं दोनों ही, जब से जन्म लिया है।
उनकी निर्मलता को तो, लोगों ने ध्वस्त किया है।
नहीं चाहतीं हैं औरों से, सीमाएं खिंचवाना।
वे चाहें निर्बाध निरंतर, हर पल आगे जाना।
नारी और नदी दोनों ही, स्वयं गढ़ें मर्यादा।
किंतु टूटती यदि सीमाएँ, हो विनाश फिर ज्यादा।
चाहे जितनी कठिन डगर हो,कठिन लक्ष्य को पाना।
नारी और नदी से सीखें, उसे सहज पा जाना।
दोनों के मन की आकांक्षा, प्रियतम में खो जाना।
खोकर निज अस्तित्व सदा को, उसका ही हो जाना।
इंदु पाराशर