स्वयं को बदलना होगा…
है कठिन मेरी डगर, पर मुझे चलना होगा
परिवर्तन को नियम जानकर, स्वयं को बदलना होगा…
बरसों से कैद हूँ, स्वप्न के पिंजरे में
परंतु कभी तो, बाहर इससे निकलना होगा…
परिवर्तन को नियम जानकर, स्वयं को बदलना होगा…
अब तक मन ने की, मन की मानी
मन ही की सुनी, मन ही की जानी
मन ने अब तक मुझे छला है
अब मुझे मन को छलना होगा…
परिवर्तन को नियम जानकर, स्वयं को बदलना होगा…
जीवन का मध्यम बीत रहा है गुनने में
प्रारंभ सबकी सुनने में व्यतीत हुआ
लेकिन जीवन के अंतिम प्रहर में
निश्चित लक्ष्यों को पूरित, अवश्य ही करना होगा…
परिवर्तन को नियम जानकर, स्वयं को बदलना होगा…
संघर्ष ही यूं ही उम्र भर चलता रहेगा
जीवन के अंतिम श्वास तक, जारी रहेगा
शत्रु कोई और नहीं, स्वयं मैं
स्वयं के अंतर से मुझे लड़ना होगा…
परिवर्तन को नियम जानकर, स्वयं को बदलना होगा…
मस्तिष्क बेचारा जूझता रहता है
रात -दिन सवाल, जवाब फिर सवाल
हर प्रश्न का उत्तर स्वयं हूँ, फिर भी निरुत्तर
हर उत्तर का बन प्रत्युत्तर, आगे बढ़ना होगा…
परिवर्तन को नियम जानकर, स्वयं को बदलना होगा…
बचपन वाली सब निश्चल बातें
हो गई अनजानी, सब पहचानी बातें
निश्चलता, विक्षिप्तता है कहलाती
श्रेष्ठता की खातिर, यह कुठाराघात सहना होगा…
परिवर्तन को नियम जानकर, स्वयं को बदलना होगा…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
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