स्वयं को ,’दीप’ के भविष्य में देखा था पापा ने
“आंखों में आज नमीं सी है
डिअर पापा आज फिर आपकी कमी सी है”…
आप जहाँ भी हो अन्तर्मन की गहराईयों से
आपको “कोटिशः नमन”
आपको श्रद्धांजलि स्वरूप कुछ
“काव्यपुष्प”
आपके श्रीचरणों में
सादर समर्पित……….
स्वयं को ,’दीप’ के भविष्य में देखा था पापा ने
दीप’ के बारे में ‘बाती’ से ,ज्यादा कुछ सोचा था पापा ने
इस ‘दीप’ से जग को रोशन करना चाहते थे वो
कि खुद बाती बन ‘दीप’ को जगमगाना चाहते थे वो
लौ की तरह खुद जलकर ,
प्रकाशित ‘दीप’ को करना चाहते थे वो
ये सच है नो माह तक, कोख में पाला, मुझे माँ ने
जहन में नो माह तक, रखा था पापा ने
जब खोया कहीं ‘दीप’, संग खोये पापा भी
मेरे संग में चले ,संग में रोये पापा भी
आपके नेह से , मीठी मिठाई हो नहीं सकती
ईश्वर की इससे बढ़कर कोई ख़ुदाई हो नहीं सकती
झपकते ही पलक जो ‘दीप’ को रोशन कर देती
आपकी डांट सी कोई दवाई हो नहीं सकती
ह्रदय से गंगा जैसा शुद्ध मन से साफ-साफ होगा
हवन के मंत्र सा ,माला के जाप सा होगा
दीप’ सुना हे होता है ईश्वर ,दुनिया चलता जो
गर होगा इस धरा पर, बिल्कुल आप से होगा
-जारी…..
आपके कुल का ‘दीप’
‘कुलदीप’
Love you dear papa
miss u a lot…….