स्वयं के परिचय की कुछ पंक्तियां
कि मैं तो उगता सूरज हूं अभी दिनकर विधाओं का,
मिले आशीष तो बन जाऊं मैं भी दिव्य ज्वाला सा।
हुए प्रणम्य अपने कर्म से जो वीर भारत के,
उन्हें शत शत नमन करता हूं मन प्राणों से बंधन है।
मगर सुन लें जो बनकर बैठें हैं जयचंद्र भारत में,
कलम में ऐसी ताकत है बिखर जाएगा टुकड़ों सा
की मैं तो स्वर्णिम आभा हूं चमकते जुगनू के जैसा
मिले आशीष हूं करबद्ध तो फिर कुछ लिखूं ऐसा।
नमन कर जाए ये युग पंक्तियों को इसे स्वीकारे
लगे सबको की रचना मैं कोई तो है हरिश्चंद्र सा।
अभिषेक सोनी
(एम०एससी०, बी०एड०)
ललितपर, उत्तर–प्रदेश