स्वप्न
आँखों मे बसे कुछ सपने है, कभी होंगे सच तो कुछ रह व् छूट जाते है । सपनो की दुनिया मे अजीब कश्मकश है।
बन्द आँखों से दिखाई देता सब कुछ है, जब आँखें खुलती है। तो सब खत्म हो जाता है।
चंद लम्हों की इस दुनिया मे, मिल जाता सब है।
प्यासी आँखे ढूढ़ती है, उस अनंत को।
पर सपनो की इस दुनिया मे, इस सजीव सपने को भूल जाते सब है। अपने अपने को समझते सभी, सुपर्ब हकीकत से अनभिज्ञ। स्वरचित रचना सुनीता गुप्ता
राष्ट्रीय प्रचारिका प्रति श्रुति भारत साहित्य संगम नारी शक्ति
कानपुर उत्तर प्रदेश