स्वप्न सुधा का माधुर्य (प्रातः काल का संक्षिप्त वर्णन)
1.स्वप्न सुधा के माधुर्य से
जो जाम झलकता है
वह पल भर में ही धूमिल हो कर
निश्चल ही बह जाता है
कह न पाए मन वो किसी से
क्षण भर पुलकित हो जाता है
तन्हाई में याद जब आए
तन मन आनंदित हो जाता है
2.बस में हो गर मन के घेरे
बांध लें उस क्षण को
कौतूहल के आनंद को
जिव्हा तक जो ला सके
तार मधुर वीणा के
हर पल में समा सकें
3. इतने में चक्षु ने अनुभव किया
प्रकृति की लालिमा को
निहारने का असीम क्षण
जो पुकार रहा हो
अपने प्रकाश की उजली किरण की
जय जयकार करते हुए
पिहु की स्वचछंद ध्वनि
मन मुग्ध कर रही हो
4.कोयल की प्रतिध्वनि
मधुर कलरव से मन लुभाते हुए
मानो कह रही हो कि
स्वप्न सूधा माधुर्य से
अस्तित्व में आ रे मानव
इस मनोहारी रूपहर्ले दृश्य का
मनोरम स्वागत करते हुए
5.नदिया कलरव करती
निशब्द बह रही हो
सर्वत्र फूल खिलते हुए बगिया में
महकती खुशबू बिखेर रहे हों
निस्पंदन भाव से रूप दे
नवीनतम भावों के रस को
स्वयं मे समाहित करते हुए
स्वीकार जिंदगी के
हर पल के कुदरती क्षण को
6.धन्यवाद कर
उस सर्व शक्तिमान ईश्वर का
जो सर्वत्र विराजमान है
जिसकी असीम कृपा से
तेरे चक्षु यह मनमोहक
दृश्य निहार पाये एवं
ईश्वर ने इस निनाद प्रफुल्ल
आनंद के लुत्फ उठाने हेतु
चक्षु तो प्रदान किए
इसी संदर्भ में प्रतिदिन नवयौवन चेतना का नव उदय होता है, फिर शरीर में कैसी जागृति आती है , इस संबंध में एक मां द्वारा सुबह-सुबह दिया जाने वाला संदेश, इस कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर रही हूं शायद हो सकता है, आपने बचपन में पढ़ी हो । आजकल के छात्र छात्राओं के लिए अमूल्य संदेश है कि प्रकृति के इस स्वरूप को पहचाने एवं आलस त्यागे व अपने अध्ययन में रूचि लेते हुए अध्ययन कार्य सम्पन्न करें । क्यो कि वर्तमान में यह देखा जा रहा है कि छात्र छात्राएं किसी भी तरह का तनाव दिमाग में रखकर बिना सोचे समझे आत्म हत्या का कदम उठाते हैं,वे यह विचार भी नहीं करते कि हर माता-पिता कितनी कठिनाई से उनको जन्म से लेकर हर क्षण पालन पोषण करते हुए अपनी हेसियत के अनुसार पाठशाला एवं विश्व विद्यालय में अध्ययन कराते हैं ताकि वह एक काबिल इंसान बन सके ।
उठो लाल अब आंखें खोलो,
पानी लाईं हूं मुंह धो लो,
बीती रात कमल दल फूले,
जिनके ऊपर भौंरे झूले,
चिड़िया चहक उठी पेड़ों पर,
बहने लगी हवा अति सुंदर,
नभ में प्यारी लाली छायी,
धरती ने प्यारी छबि पाई,
भोर हुआ सूरज उग आया,
जल में पड़ी सुनहरी छाया,
नन्ही नन्ही किरणे आई,
फूल खिले कलियां मुसकायी ,
इतना सुंदर समय मत खोओ,
मेरे प्यारे अब मत सोओ ।
रचयिता रचयिता श्री सोहनलाल द्विवेदी
विगत कुछ वर्षों से मै अपनी असामयिक स्वास्थ्य तकलीफ के चलते, पूर्ण रूप से सकारात्मक विचार रखते हुए, उनसे निदान करने एवं उनसे ऊबरने के पश्चात सुबह सुबह जो एहसास मुझे हुआ, वह उपर्युक्त प्रथम कविता के शब्दो के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश की है । हर वह इंसान जो गहन चिकित्सा के उपरान्त अपने आप को सकारात्मक विचार के साथ स्थिति को सम्भाले तो पूर्ण रूप से ठीक हो सकते हैं । धन्यवाद सभी को ।