स्वप्न मन के सभी नित्य खंडित हुए ।
स्वप्न मन के सभी नित्य खंडित हुए ।
दोष जिन पर वही नित्य मंडित हुए ।
आस्थाएँ सभी रक्त रंजित मिलीं –
ज्ञान से जो रहे दूर पंडित हुए ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
उन्नाव उ० प्र०
स्वप्न मन के सभी नित्य खंडित हुए ।
दोष जिन पर वही नित्य मंडित हुए ।
आस्थाएँ सभी रक्त रंजित मिलीं –
ज्ञान से जो रहे दूर पंडित हुए ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
उन्नाव उ० प्र०