स्वपन के आस पास
रोशनी को दीप जले
तिमिर को न आया रास
बैठा न जाने कहाँ
आनन छुपा के आज
सुन्दर कंदीलों सी
सजने लगी मन में आस
देदीप्य आशाओं का
जगमग हुआ आकाश
हृदय मंच में उमंग
करने लगा विकास
खत्म होने को है
अंधकार का पिचाश
मन का रथी चला
स्वपन के आस पास
अश्रु का ताल सुखा
तिरता नैनन में हास
✍हेमा तिवारी भट्ट✍