स्वतंत्र न होते हुए भी स्वतंत्र हैं
भारत देश
अंग्रेजों की गुलामी और जुल्म की
बेड़ियों से
सदियों हुए
आजाद हो गया लेकिन
क्या इस महान देश के
समस्त देशवासी आज की तारीख में
यह महसूस करते हैं कि
वह सही अर्थों में आजाद हैं
किसी से पूछो या न पूछो पर
इसका सही उत्तर है कि ‘नहीं’
मैं एक स्त्री हूं
इस सभ्य समाज का एक अहम
हिस्सा लेकिन
क्या यह समाज सभ्य है जहां
घर में
पढ़े लिखे लोगों के बीच
वह दिन रात अपमानित होती है
वह पढ़ी लिखी है
अपने पांवों पर खड़ी है
तब भी उसे एक अनपढ़ की तरह
दुत्कार जाता है
एक अनचाहे बोझ की तरह समझा जाता है
वह चाहे या न चाहे
उसकी जबरन शादी करके
उसे अपने घर से
निकाला जाता है
किसी कारण वह वापिस लौट आये तो
उसे प्रताड़ित करके अंततः
उसे जान से मारकर उसकी लाश को ही
घर से बाहर निकाला जाता है
गर वह शादी न करे तो
मां बाप के बूढ़ा, बीमार और
लाचार होने पर और
उनके मर जाने के बाद तो
उसे उसके ही भाई, भाभी और
उनके बच्चों द्वारा पीटा जाता है
वह घर का हिस्सा ही नहीं है
यह अहसास उसे उठते बैठते कराया
जाता है
वह घर से कहीं निकलकर
किसी आश्रम में रहने के लिए
चली जाये
यह उसे कहा जाता है
उससे सारे घर का काम
एक नौकरानी की तरह करवाया जाता है
उसको मौका मिलते ही बेरहमी से
पीटा जाता है
उसके स्वास्थ्य, रखरखाव,
घूमने फिरने, इच्छाओं,
भावनाओं आदि का कोई
ख्याल नहीं रखा जाता है
उसको कभी कोई आवश्यक
कार्य हो तो उसे
अनसुना किया जाता है
जमीन जायदाद में उसे कोई
हिस्सा नहीं दिया जाता है
उसे एक विधवा, तलाकशुदा,
बदचलन औरत जैसे
न जाने कितने अशोभनीय
तमगों से नवाजा जाता है
उसकी रोटियों को गिना जाता है
उसे कोई मिठाई, पेय पदार्थ,
मेवे आदि जैसा खाने पीने का
सामान नहीं दिया जाता है
उसके बारे में सारे समाज में
उसके खिलाफ एक साजिश का
जाल फैलाया जाता है
उसका व्यवहार अजीब है
वह असामाजिक है
कहीं ले जाने लायक नहीं है
कहीं उठने बैठने लायक नहीं है
ऐसी विकृत मानसिकता का
उसमें विकास हो यह प्रयास
होता है
रिश्तेदारों का व्यवहार भी
अनुचित होता है
भाई अपनी पत्नी, बेटियों,
सास ससुर, ससुराल पक्ष आदि को ही भाव
देता है
वह तरह तरह के अपशब्दों का
प्रयोग करता है
वह उसकी पत्नी के पांव की
जूती भी नहीं
इस तरह की अभद्र टिप्पणियां करता
है
भोजन की सामग्री जो बच
जाये तो उसे खाने के लिए
कहता है
घर में जहां बैठे उसे वहां से
उठ जाने के लिए कहता है
यह पंखा नहीं चलायेगी
यह बिजली बंद करो
यह क्यों किया
किससे पूछ कर किया
यह दरवाजा क्यों नहीं खोला
यह खिड़की खुली थी
बंद करने की हिम्मत कैसे करी
अपनी पत्नी को बुलाकर
बंद कमरे में पिटवायेगा
समाज के सामने
कुछ पल को दूध में घुली शक्कर
सा बन जायेगा
चलते फिरते धीरे से
कानों में आकर धमकायेगा
सड़क पर चलेगी तो
टांगें तोड़ देंगे
तेरे हाथ में घर का
कोई हिसाब किताब नहीं देंगे
तुझे घसीटकर पागलखाने छोड़कर
आयेंगे
धक्के मारकर तुझे घर से बाहर
निकालेंगे
इस तरह की बातों का
तब तक अंत नहीं होता
जब तक उस लड़की या औरत के
जीवन का अंत न हो जाये
अकेली वह कहीं रह नहीं
सकती
शादीशुदा हो और पति
पीटे
ससुराल पक्ष शारीरिक और
मानसिक यातनायें दे तो
किसी से कुछ कह नहीं सकती
बच्चे बड़े होकर
अपने परिवारों में मगन हो
जाते हैं
वृद्ध मां बाप को तो
अधिकतर वृद्धाश्रम का ही
रास्ता दिखाते हैं
कोई उसपर हाथ डाले या
उसकी इज्जत आबरू लूटे तो
उसपर विश्वास ही नहीं करेंगे और
जिसने यह सब किया है
उसका पक्ष लेने लगेंगे
उससे हमदर्दी जताने लगेंगे
उस लड़की के चरित्र पर शक
करने लगेंगे
उसे उस चौराहे पर लाकर
खड़ा कर देंगे जहां
मरने के अलावा उसके पास
कोई विकल्प ही न बचे
गरीब और नासमझ
बच्चों का भी शोषण
बहुत है
उन्हें खरीदा बेचा जा रहा है
उनसे हर तरह का काम
करवाया जा रहा है
उन्हें न शिक्षित किया जा रहा
न ही उन्हें स्वास्थ्य सुविधायें
प्रदान की जा रही
समस्याओं का तो कोई अंत नहीं
है
इतनी विकट कठिनाइयों के
जाल में फंसकर
सिर से पांव तक दलदल में
फंसकर स्वतंत्रता का
अनुभव कैसे करें
उसका स्वाद कैसे चखे
यह एक पहेली है
इसका निवारण काफी हद तक
अपने हाथ में भी है
जिन चीजों पर नियंत्रण
सम्भव है
उसका अपने व्यक्तित्व के
विकास में भरपूर सहयोग लें
अपने आत्मविश्वास को कभी
डगमगाने न दें
जितना सम्भव हो सके
जो भी हालात हों
प्रतिदिन छोटी छोटी
कोशिशें करते रहें
कोई भी गलत कार्य करने से
बचें
किसी भी समस्या को अपने
ऊपर बहुत अधिक हावी न होने दें
सही आदमी की पहचान करना सीखें
जो मददगार हों
आपका शुभ चाहते हों
उनका सहयोग लें और
उन्हें जब मदद की जरूरत हो तो दें भी
जो आपको कैसे भी बुरा महसूस
कराते हों
आपका हौसला गिराते हों
उनपर ध्यान न दें
यह सोचकर चलें कि साथ
कुछ नहीं जायेगा
भौतिकतावाद में ज्यादा न उलझे
किसी ने अच्छा पहन लिया
आपको उतना अच्छा पहनने को नहीं मिला
किसी ने बड़े होटल में खाया
आपको घर के खाने से ही
संतुष्ट होना पड़ा
इन बातों से ऊपर उठ जाइये
एक कप चाय चाहे वह
पांच सितारा होटल में पी या
घर या ढाबे में
है वह चाय ही
होटल में पीने से
अमृत नहीं हो जायेगी
किसी गंतव्य स्थान पर
पहुंचना है
कार से
किसी वाहन से नहीं पहुंच पाये
पैदल चलना पड़ा
छोड़ दीजिये
यह छोटी छोटी बेकार की
बातें
मकसद है आपका
जहां पहुंचना था वहां पहुंच पाना
बड़ी से बड़ी दुर्घटना को
गंभीरता से न लें
सहज भाव से लें
मैं ही भुक्तभोगी नहीं
जो मेरी कहानी है
वही सबकी कहानी है
यह समस्यायें सबके जीवन में हैं
हर कोई जूझ रहा है
यह सोचना शुरू करें जो
सत्य भी है
कोई बुरा व्यवहार करे तो
यह सोचे कि आपका व्यवहार
कितना अच्छा है
आप खुद को शाबाशी दे
कहने का अर्थ यह है कि
आप दुविधाओं के जाल में
फंसे होने के बाद भी गर
स्वतंत्रता का अनुभव
प्राप्त करना चाहते हैं तो
आपको कहीं न कहीं
अपने दिलो दिमाग के
अर्थहीन बंधनों से मुक्त
होना पड़ेगा
सोच को व्यापक बनाना होगा
जीने का उत्साह बनाये
रखते हुए
अपने दिल को बड़ा करना
होगा
आप एक महान व्यक्ति हैं
और आप मरते दम तक
चेष्टा करते रहेंगे
इस दुनिया को छोड़कर जाने से
पहले
कुछ न कुछ योगदान करने की
पहल तो आपको ही करनी होगी
एक कमरे में बंद भी
आपको
खुले आसमान में एक पंछी की
तरह अपने विचारों के
पंख फैलाकर
उड़ने का स्वप्न
सुबह शाम देखना होगा
आखिरी सांस तक
उसे सफल बनाने का
प्रयास करते रहना होगा
स्वतंत्र न होते हुए भी
आप स्वतंत्र हैं
इस मनोस्थिति को तो
खुद में विकसित करना होगा
और फिर जादू देखियेगा
आपको जल्द ही
एक दिन सच में लगेगा कि
आप अपने घर,
घर की चारदीवारी के बाहर
या किसी भी स्थान पर
खुली हवाओं में सांस लेते
एक स्वतंत्र प्राणी हैं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001