Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Mar 2018 · 2 min read

स्वतंत्रता सेनानी लाला हरदयाल

देश को स्वतन्त्र कराने की धुन में जिन्होंने अपनी और अपने परिवार की खुशियों को बलिदान कर दिया, ऐसे ही एक क्रान्तिकारी थे 14 अक्तूबर, 1884 को दिल्ली में जन्मे लाला हरदयाल। इनके पिता श्री गौरादयाल तथा माता श्रीमती भोलीरानी थीं। इन्होंने अपनी सभी परीक्षाएँ सदा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। बी.ए में तो उन्होंने पूरे प्रदेश में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था।

1905 में शासकीय छात्रवृत्ति पाकर ये आॅक्सफोर्ड जाकर पढ़ने लगे। उन दिनों लन्दन में श्यामजी कृष्ण वर्मा का ‘इंडिया हाउस’ भारतीय छात्रों का मिलन केन्द्र था। बंग-भंग के विरोध में हुए आन्दोलन के समय अंग्रेजों ने जो अत्याचार किये, उन्हें सुनकर हरदयाल जी बेचैन हो उठे। उन्होंने पढ़ाई अधूरी छोड़ दी और लन्दन आकर वर्मा जी के ‘सोशियोलोजिस्ट’ नामक मासिक पत्र में स्वतन्त्रता के पक्ष में लेख लिखने लगे।

पर उनका मन तो भारत आने को छटपटा रहा था। वे विवाहित थे और उनकी पत्नी सुन्दररानी भी उनके साथ विदेश गयी थी। भारत लौटकर 23 वर्षीय हरदयाल जी ने अपनी गर्भवती पत्नी से सदा के लिए विदा ले ली और अपना पूरा समय स्वतन्त्रता प्राप्ति के प्रयास में लगाने लगे। वे सरकारी विद्यालयों एवं न्यायालयों के बहिष्कार तथा स्वभाषा और स्वदेशी के प्रचार पर जोर देते थे। इससे पुलिस एवं प्रशासन उन्हें अपनी आँख का काँटा समझने लगे।

जिन दिनों वे पंजाब के अकाल पीडि़तों की सेवा में लगे थे, तब शासन ने उनके विरुद्ध वारण्ट जारी कर दिया। जब लाला लाजपतराय जी को यह पता लगा, तो उन्होंने हरदयाल जी को भारत छोड़ने का आदेश दिया। अतः वे फ्रान्स चले आये।

फ्रान्स में उन दिनों मादाम कामा, श्यामजी कृष्ण वर्मा तथा सरदार सिंह राणा भारत की क्रान्तिकारी गतिविधियों को हर प्रकार से सहयोग देते थे। उन्होंने हरदयाल जी को सम्पादक बनाकर इटली के जेनेवा शहर से ‘वन्देमातरम्’ नामक अखबार निकाला। इसने विदेशों में बसे भारतीयों के बीच स्वतन्त्रता की अलख जगाने में बड़ी भूमिका निभायी।

1910 में वे सेनफ्रान्सिस्को (कैलिफोर्निया) में अध्यापक बन गये। दो साल बाद वे स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में संस्कृत तथा हिन्दू दर्शन के प्राध्यापक नियुक्त हुए; पर उनका मुख्य ध्येय क्रान्तिकारियों के लिए धन एवं शस्त्र की व्यवस्था करना था।

23 दिसम्बर, 1912 को लार्ड हार्डिंग पर दिल्ली में बम फंेका गया। उस काण्ड में हरदयाल जी को भी पकड़ लिया गया; पर वे जमानत देकर स्विटजरलैंड, जर्मनी और फिर स्वीडर चले गये। 1927 में लन्दन आकर उन्होंने हिन्दुत्व पर एक ग्रन्थ की रचना की।

अंग्रेज जानते थे कि भारत की अनेक क्रान्तिकारी घटनाओं के सूत्र उनसे जुड़ते हैं; पर वे उनके हाथ नहीं आ रहे थे। 1938 में शासन ने उन्हें भारत आने की अनुमति दी; पर हरदयाल जी इस षड्यन्त्र को समझ गये और वापस नहीं आये। अतः अंग्रेजों ने उन्हें वहीं धोखे से जहर दिलवा दिया, जिससे तीन मार्च, 1939 को फिलाडेल्फिया में उनका देहान्त हो गया।

इस प्रकार मातृभूमि को स्वतन्त्र देखने की अधूरी अभिलाषा लिये इस क्रान्तिवीर ने विदेश में ही प्राण त्याग दिये। वे अपनी उस प्रिय पुत्री का मुँह कभी नहीं देख पाये, जिसका जन्म उनके घर छोड़ने के कुछ समय बाद हुआ था।
………………………………….

Language: Hindi
Tag: लेख
246 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"सत्संग"
Dr. Kishan tandon kranti
धरा प्रकृति माता का रूप
धरा प्रकृति माता का रूप
Buddha Prakash
अपने मन मंदिर में, मुझे रखना, मेरे मन मंदिर में सिर्फ़ तुम रहना…
अपने मन मंदिर में, मुझे रखना, मेरे मन मंदिर में सिर्फ़ तुम रहना…
Anand Kumar
🙅आज का सवाल🙅
🙅आज का सवाल🙅
*प्रणय*
गलतफहमी
गलतफहमी
Sanjay ' शून्य'
मनभावन बसंत
मनभावन बसंत
Pushpa Tiwari
शुभकामना
शुभकामना
DrLakshman Jha Parimal
पत्नी के डबल रोल
पत्नी के डबल रोल
Slok maurya "umang"
शिव - दीपक नीलपदम्
शिव - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
बचा ले मुझे🙏🙏
बचा ले मुझे🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
लोग जाने किधर गये
लोग जाने किधर गये
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
सफर 👣जिंदगी का
सफर 👣जिंदगी का
डॉ० रोहित कौशिक
किसी को सच्चा प्यार करने में जो लोग अपना सारा जीवन लगा देते
किसी को सच्चा प्यार करने में जो लोग अपना सारा जीवन लगा देते
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
*सुबह हुई तो गए काम पर, जब लौटे तो रात थी (गीत)*
*सुबह हुई तो गए काम पर, जब लौटे तो रात थी (गीत)*
Ravi Prakash
पाकर तुझको हम जिन्दगी का हर गम भुला बैठे है।
पाकर तुझको हम जिन्दगी का हर गम भुला बैठे है।
Taj Mohammad
मानव निर्मित रेखना, जैसे कंटक-बाड़।
मानव निर्मित रेखना, जैसे कंटक-बाड़।
डॉ.सीमा अग्रवाल
दिन - रात मेहनत तो हम करते हैं
दिन - रात मेहनत तो हम करते हैं
Ajit Kumar "Karn"
जो हम सोचेंगे वही हम होंगे, हमें अपने विचार भावना को देखना ह
जो हम सोचेंगे वही हम होंगे, हमें अपने विचार भावना को देखना ह
Ravikesh Jha
आत्मविश्वास
आत्मविश्वास
Shyam Sundar Subramanian
प्रेम का मतलब
प्रेम का मतलब
लक्ष्मी सिंह
3482.🌷 *पूर्णिका* 🌷
3482.🌷 *पूर्णिका* 🌷
Dr.Khedu Bharti
*यौगिक क्रिया सा ये कवि दल*
*यौगिक क्रिया सा ये कवि दल*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
* आओ ध्यान करें *
* आओ ध्यान करें *
surenderpal vaidya
......... ढेरा.......
......... ढेरा.......
Naushaba Suriya
हो जाएँ नसीब बाहें
हो जाएँ नसीब बाहें
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मेरे ख्याल से जीवन से ऊब जाना भी अच्छी बात है,
मेरे ख्याल से जीवन से ऊब जाना भी अच्छी बात है,
पूर्वार्थ
कामुकता एक ऐसा आभास है जो सब प्रकार की शारीरिक वीभत्सना को ख
कामुकता एक ऐसा आभास है जो सब प्रकार की शारीरिक वीभत्सना को ख
Rj Anand Prajapati
कैसै कह दूं
कैसै कह दूं
Dr fauzia Naseem shad
मन का डर
मन का डर
Aman Sinha
फ़र्ज़ ...
फ़र्ज़ ...
Shaily
Loading...