स्वतंत्रता दिवस (लघुकथा)
स्वतंत्रता दिवस (लघुकथा)
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कॉलेज में स्वतंत्रता दिवस समारोह के उपरांत प्रोफेसर अवनीश जब घर वापस आ रहे थे तब उनके मन में ख्याल आया कि क्यों न अपने सहकर्मी प्रोफेसर रमेश के घर जाकर उनके पिता का हाल चाल पूछ लिया जाए। बहुत दिनों से मिलना नहीं हुआ था। फिर यह भी पता चल जाएगा कि आज प्रोफेसर रमेश कॉलेज क्यों नहीं आए ।
रमेश के घर पहुंचे। रमेश ने दरवाजा खोला। रमेश के पिताजी आराम कुर्सी पर बैठे हुए मुस्कुरा रहे थे। उनके चरण स्पर्श किए। चरण स्पर्श करने से रमेश के पिताजी प्रसन्न हो गए। कहने लगेः देखो कितना आदर और सम्मान बुजुर्गों के प्रति तुम्हारे मन में है। फिर दोनों में बातचीत होने लगी। तभी अकस्मात अवनीश ने पूछ लिया” रमेश आज तुम कॉलेज नहीं आए क्या बात ?”
रमेश ने कहा “स्वतंत्रता दिवस समारोह में रखा ही क्या है! मैं दिखावे के देश प्रेम में विश्वास नहीं करता। एक दिन झंडा उठाओ, भारत माता की जय बोलो, इस में क्या रखा है । देशप्रेम तो दिल में होना चाहिए, दिखावे में नहीं।”
अवनीश ने कहा कुछ नहीं, बस मुस्कुरा दिए। कुछ देर बैठ कर तीनों ने चाय पी ।उसके बाद अवनीश उठकर चलने लगे। उन्होंने रमेश के पिताजी की आंखो में आंखे डाल लीं, लेकिन कोई नमस्ते नहीं की। कोई चरणस्पर्श नहीं, सीधे तटस्थ भाव से पीछे मुड़ गए दरवाजे की तरफ।अब रमेश के पिताजी ने अवनीश को आवाज दी।” क्या बात !क्या कुछ नाराज हो गए? तुमने आज चलते समय हमारे चरण स्पर्श नहीं किए, नमस्ते तक नहीं की ,बड़ों का आदर तो करना ही चाहिए ?”
अब अवनीश ने सिर झुका कर कहा” बाबूजी मैंने केवल एक प्रश्न का उत्तर देने के लिए यह आप की अवमानना की है ।”
फिर रमेश की तरफ मुंह करके कहा “रमेश तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर शायद मिल गया होगा। आदर और सम्मान केवल और केवल दिल से अभिव्यक्त करने की चीज नहीं होती। हाव भाव व्यवहार यह भी तो कोई मायने रखता है। जरा सोचो बाबूजी को हमने चरण स्पर्श नहीं किए तो उनको कितना बुरा लगा हालांकि दिल में उनके प्रति बहुत सम्मान है मुझे ।लेकिन फिर भी उस सम्मान को अभिव्यक्त करने के लिए कुछ हाव भाव व्यवहार आचरण जरूरी होता है। राष्ट्रगीत गाना, राष्ट्रगान गाना और तिरंगा फहराना देश के प्रति हमारे हृदय की भावनाओं को अभिव्यक्त करता है इस अवसर पर देशभक्ति के गीतों को गाना तथा उस में सम्मिलित होना यह भी देश के प्रति हमारी आस्था का परिचायक है ”
रमेश अब निरुत्तर था । उसका सिर झुका था ।कहने लगा “बात तो सही कह रहे हो”
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लेखक रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
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