स्वच्छ भारत (लघुकथा)
स्वच्छ भारत (लघुकथा)
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उन सज्जन की आयु करीब 55 साल की होगी। एक समारोह में वह स्टाल पर आलू की टिकिया खा रहे थे ।उनका हाथ हल्का चल रहा था। जब आलू की टिकिया खा चुके तो उन्होंने हल्के से दोने को फेंकने के लिए चारों तरफ देखा । कूड़ेदान कुछ ज्यादा दूर था। आंखों ही आंखों में उन्होंने दूरी का अनुमान लगाया और कुछ सोचकर फिर कूड़ेदान की तरफ बढ़ने की बजाय कदम पीछे हटा लिया। अब उनके हाथ में झूठा दोना था और वह अगल – बगल चोरों की- सी निगाह से देख रहे थे।
तभी उन्होंने मेज के नीचे झुक कर दोना फेंकने का मन बना लिया ।वह अकस्मात मेज के नीचे दोना फेंकने के लिए झुके भी । लेकिन फिर न जाने क्यों, दोना फेंकने का उनका मन नहीं किया। पूरे समारोह स्थल पर हरा कारपेट बिछा हुआ था और एक भी दोना जमीन पर नहीं पड़ा हुआ था।
वह कुछ झुंझलाए और बड़बड़ाए , लेकिन कूड़ेदान की तरफ हाथ में झूठा दोना लिए हुए तेज कदमों से बढ़ते चले गए ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451