स्वच्छ भारत अभियान (कविता )
स्वच्छ भारत अभियान (कविता )
15 सितंबर से 20 सितंबर तक स्वच्छता अभियान से संबंधित सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत से छाया चित्र और चलचित्र प्राप्त हुए। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वाकई में स्वच्छता अभियान एक ही दिन की सार्थकता रखता है यह मैं इसलिए कह रही हूँ कि कुछ चित्रों में लोग स्वयं कूड़ा फैला रहे थे और फिर उसे साफ कर रहे थे , कुछ चलचित्रो में डिब्बों में भरा हुआ कूड़ा साफ़ जगह पर डालकर बुहार रहे थे और सबसे आगे वही लोग थे जो कूड़ा फैला रहे थे और दिखावे के लिए झाड़ू लगा रहे थे , कुछ चित्रों में हाथ में नाम के लिए झाड़ू ली गई थी मानो झाड़ू का भी अपमान हो रहा हो । बिना झुके बिना कोई ज़हमत उठाए प्रभुत्वजन हवा में ही झाड़ू मार रहे थे, कुछ आँखों पर काला चश्मा और महिलाएँ महंगी साड़ी और पुरूष श्वेत वस्त्रों में दिखाई दिए यह कौन-सा और कैसा स्वच्छता अभियान है अभियान वह नहीं जो एक ही दिन शुरू और एक ही दिन में खत्म हो जाए यह तो मात्र खानापूर्ति है ।
इसी को देख कुछ विचार सागर की लहरों की तरह आए और कलम की नोक पर छा गए जो कविता के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ ।
स्वच्छ भारत अभियान
स्वच्छ भारत अभियान ।
सिर्फ एक दिन का है कार्यकाल ।
कूड़ा डाल सड़क पर स्वयं ।
करें फिर उसी कूड़े पर श्रमदान ।
क्या यही है स्वच्छता अभियान ?
सफाई करते हुए फोटो डाली जाती है ।
सिमटे हुए कूड़े को उड़ेल
झाड़ू लगाई जाती है ।
नई झाड़ू खरीद बुहारी लगाई जाती है ।
एक ही दिन स्वच्छता अभियान से जुड़ने की रसम निभाई जाती है ।
फिर अगले दिन उसी कूड़े के ढेर को लांघ दिनचर्या गुजारी जाती है ।
क्या यही है स्वच्छता अभियान ?
सरकारी ऐलान आते ही
विचार बनाया जाता है ।
सोच…एक दिन प्रचार हेतु
झाड़ू उठाया जाता है ।
भिन्न-भिन्न मुद्राओं में
फोटो खिंचवाया जाता है ।
स्वयं के प्रचार हेतु वही फोटो
जन-जन में बांटा जाता है ।
क्या यही है स्वच्छता अभियान ?
घर में जो चम्मच भी न उठाते हैं ।
स्वच्छता अभियान में योगदान देने हेतु
झाड़ू भी लगाते हैं ।
दूसरों की नजरों में सम्मान पाने हेतु
प्रचार करवाते हैं ।
फिर अगले ही दिन
अपनी कुर्सी से चिपके नजर आते हैं ।
क्या यही है स्वच्छता अभियान ?
अगर यह है स्वच्छता अभियान तो क्यों है देश में हर जगह कूड़े का पहाड़ ?
क्या इसका जवाब है आपके पास ?
नहीं…
क्योंकि यह स्वच्छता अभियान है सिर्फ एक दिन सिर्फ एक दिन का महाजाल ।
नीरू महन ‘वागीश्वरी’