स्याह रात ने पंख फैलाए, घनघोर अँधेरा काफी है।
शंखनाद की गुंज उठी, युद्ध तो अभी बाकी है।
स्याह रात ने पंख फैलाए, घनघोर अँधेरा काफी है।
प्रज्ज्वलित दरिया के समक्ष खड़ी मैं, पार उतरना बाकी है।
ना नय्या ना खेवय्या, आत्मविश्वास की पाल संभाली है।
राह में गरजते भंवरों पर, हिम्मत की हूंकार भी तो काफी है।
चोटिल हुए भावनाओं के, अब कत्ल की भी तो तैयारी है।
स्यंम की टूटी सीमा का, बस धाराशायी होना बाकी है।
पाषाण हो चुकी संवेदनाएं, बस तोड़- बिखेरना काफी है।
हृदय की मृत्यु तो कब की हो चुकी, अब सांसों का उखड़ना बाकी है।
ना आदि, ना ही अंत, पर सफर अभी भी जारी है।
मध्यांतर में इसके हीं, घनघोर संघर्ष की बारी है।
असत्य ने सदैव थी, बाजी मारी, आज सत्य ने की तैयारी है।
मलीनता के धब्बों का अब भी, उस आंचल पर पड़ना बाकी है।
स्याह रात ने पंख फैलाए, घनघोर अँधेरा काफी है।