स्याही की मुझे जरूरत नही
लिखती हूँ मैं तुम्हें आँसुओं से,
स्याही की मुझे जरूरत नही…।
सोचती हूँ मैं तुम्हें तुम्हारे
सोचने से पहले मुझे और
कुछ सोचने की जरुरत नही…।।
करती हूँ इंतज़ार मैं आने
का कोई तो पैगाम दे…।
खुशी की अब कोई आस नही
पुराने दर्दो को ही कोई नया नाम दे…।।
मिलती हूँ मैं तुमसे रोजाना ही ख्वाबों में,
तुम्हें मेरे करीब रहने की जरूरत नही…।
लिखती हूँ मैं तुम्हें आँसुओं से,
स्याही की मुझे जरूरत नही…।।
खामोश है जुबां मेरी न जाने
कितने ही सालों से…।
बोल उठेगी तुम जो कह दो
खेलकर मेरे बालों से…।।
देखती हूँ मैं तुम्हें चाँद तारों में,
मुझे तुम्हारी तस्वीर की हसरत नही…।
लिखती हूँ मैं तुम्हें आँसुओं से,
स्याही की मुझे जरूरत नही…
है इश्क मुझे तुमसे समंदर
की गहराई से ज्यादा…।
यूँ झूठी आशाएँ देकर ना कर
अब तूँ कोई नया वादा…।।
कहती है रातें मुझसे तुम्हें
यादों में आने की जरूरत नही…।
लिखती हूँ मैं तुम्हें आँसुओं से,
स्याही की मुझे जरूरत नही…।।
लेखिका- आरती सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित रचना