स्मृतिकोश
छविचिंतन
स्मृतियों के कोष में ,
मोती मुक्ता सम चमकीं।
यादें तुम्हारी प्रियवर वो
मन गुहा में जैसे चटकीं।।
गहन कारा में जैसे
तप करती साध्वी सी
उरनिलय में निवासिनी
बन रहे ज्यों वह तापसी ।
विह्वल उर्मियाँ देह में
यादों संग क्यों बिफरती।।
अमा निशां का वो सन्नाटा ।
चंद्र रश्मि धरा विराजती
धुंधली सी सुधियाँ आकर
चंद्र प्रभा संग ज्यों राजती।
मधु स्मित पथ यूँ बुहारे
पलक अलक ज्यूँ भटकी।।
स्वरचित
©® मनोरमा जैन पाखी
बुधवार ,
22/04/2020