स्पर्श !
स्पर्श से,स्पर्श करा दो स्पर्श का
लगे मुझे,भाग मैं भी हूँ अर्श का ।
अभी तक दर्द में ही
जीती रही हूँ मैं
हजारों घुट दर्द के ही
पीती रही हूँ मैं।
तमन्ना की तमन्ना में
समाई रही हूँ मैं
तन्हाई बन तन्हाई पर
हरछाई रही हूँ मैं।
लाखों की भीड़ में
अकेली ही रही हूँ मैं
अपने लिए भी एक
पहेली ही रही हूँ मैं।
तलाशे-मंजिल के लिए
राहों में घुटती रही हूँ मैं
चाहत के लिए नफरतों में
लुटती रही हूँ मैं ।
छुपाकर हजारों ज़ख्म
हँसती रही हूँ मैं
ताउम्र किसी अपने को
तरसती रही हूँ मैं ।
न समझी किसी ने मेरी
अपना पाने की आशा
न जानी किसी ने मेरी
ये अनन्त अभिलाषा
निरर्थक ही रही मेरी
स्पर्श की हर परिभाषा।
समझकर तुम इसे
स्पर्श दो , स्पर्श का
स्पर्श कर मेरे स्पर्श को
बनाओ चाँद दर्श का
लगे मुझे भी आखिर
भाग मैं भी एक अर्श का
स्पर्श से,स्पर्श कराओ स्पर्श क़ा!
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक