स्नेह से लेकर भरे मन (गीतिका)
* स्नेह से लेकर भरे मन *
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स्नेह से लेकर भरे मन, हम निरंतर पग बढ़ायें।
साथ लें सहयोग सबका, और सबके काम आयें।
राह में हर ओर सुन्दर, फूल खिलते जा रहे हो।
दूर हो सबकी निराशा, मन सभी के खिलखिलायें।
ओस की बूंदें सुहानी, मोतियों जैसी लुभावन।
धूप में है जब पिघलती, साथ कलियां मुस्कुरायें।
रात काली बीतने दो, हो रही है भोर स्वर्णिम।
उड़ चले पंछी गगन में, खूब मिल सब चहचहायें।
भावनाओं की नदी को, सींचते हैं स्नेह से जब।
सौख्य पूरित सिंधु गहरे, में सभी डुबकी लगायें।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०२/१०/२०२१