स्नेह से (गीतिका)
* स्नेह से *
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स्नेह से हर वक्त जब नजरें मिलाते तुम रहे।
फिर बताओ आज क्यों नजरें चुराते तुम रहे।
काश पहले जान जाते हम हकीकत प्यार की,
किन्तु फिर भी तीर नजरों के चलाते थे तुम रहे।
जान कर अंजान बनना बात यह अच्छी नहीं,
मन हमारा था खुला सच को छिपाते तुम रहे।
आसमां पर बादलों का दृश्य गहराता रहा,
किन्तु वह खामोश थे बिजली गिराते तुम रहे।
राह में कांटे बहुत थे हर चुभन हमने सही,
अश्क सब पीते रहे हम मुस्कराते तुम रहे।
फासलों को कम किया जाना जरूरी है बहुत,
बेवजह फिर मुश्किलों को क्यों बढ़ाते तुम रहे।
जिन्दगी में प्यार को जब अहमियत ही दी नहीं,
फिर भला किस बात की खुशियां मनाते तुम रहे।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)