स्थानीय भाषा में लोकगीत
चला चली पानी भरी आई…
मटकिया अप ने उठाई l
ई मटकी मां जान मेरी अटकी….
जाने कब फूटी जाई l…. चला चली …..
पनघट पर छेड़ नंद का लाला ….
बैठ कदम की डारी l …. चला चली..
ग्वालों की नियति यहां अटकी . ..
लुटी जाए ना जीवन की कमाई l…. चला चली ..
जो जल से भरी जाइ ए मटकी ……
भवसागर तरी जई l….. चला चली…..
जमुना में डूबत चटक गई मटकी ……
मोरी गागर सागर में समाई l…… चला चली..
संजय सिंह “सलील ”
प्रतापगढ़,उत्तर प्रदेश I