स्त्री
स्त्रीस्त्री
एक ही जन्म में
सामना करती है,
दो तरह की परिस्थितियों का|
स्त्री ने
जहाँ..
जन्म लिया है,
बोलना, चलना,
खाना, पीना सीखा है,
जहाँ उसका अपना अस्तित्व है,
वहीं लौटने के लिए स्वतंत्र नहीं है वह|
स्त्री
की स्वाधीनता का
कुछ क्षण संभव है,
अपने पिता के घर मे|
स्त्री
जैसे ही विवाह होकर
जाती है अपने घर को,
खो देती है वह..
अपनी स्वाधीनता,
अपना नाम और
अपने सपनो का संसार|
© Veerendra