स्त्री
आवाज़…. मेरे मन की… ?
तुम एक स्त्री हो…
सैकड़ों बाधाओं से बाधित
हजारों वर्जनाओं से वर्जित
अनगिनत सीमाओं में बंधी
अनगिन निगाहों में नजरबंद
फिर भी
कहां से लाती हो इतनी शक्ति
कहां से मिलती है तुम्हे
इतनी उर्जा और प्रेरणा
कैसे कर पाती हो तुम
इतना सब कुछ ?
कभी तुम मां
कभी बहन
कभी प्रेमिका
तो कभी सहेली
कभी पत्नी
तो कभी बेटी
बनकर सारे काम
आसान करती हो
सारी जिम्मेदारी उठाती हो
और पता नहीं कैसे
हल कर देती हो
हर समस्या चुटकियों में
पीहर में होती हो जब तक
एक तरफ पापा की चाय
एक ओर मम्मी का चश्मा
कहीं भैया की घड़ी है
तो कहीं अपनी खुद की किताबें
और कब पराई हो जाती हो
पता नहीं चलता..
अपनी ही शादी में
घूमती हो चकरघिन्नी की तरह
और थकान महसूस भी कर पाती
इससे पहले
पाती हो खुद को
एक नए घर में
एक नए माहौल में
माँ से दूर
बाबा से दूर
फ़िर आँसू पोछ
लग जाती हो
वापस कमर कस के…
वहां बूढे ससुर जी की लाठी,
सासू मां के दवाइयां,
पतिदेव की चाय,नाश्ता,
गाडी की चाबी,
देवर जी के ताने,
और नन्दरानी के नखरे..
कैसे संभाल लेती हो इतना सब..?
सबके बिस्तर में चाय
सबके कमरे में खाना
सबकी अलग-अलग फरमाइश
सबकी अलग-अलग ख्वाहिश
कैसे पूरी कर लेती हो ..?
एक हाथ में घर भर के कपड़े
दूसरे हाथ सब्जियो के थैले
फ़िर नन्हे मेहमान का ख्याल..
और फ़िर..
एक हाथ में मुन्ने की डायरी
तो दूसरे हाथ गुड़िया की चोटी
एक हाथ में अचार के मसाले
दूसरे हाथ में सुई धागा और कैची
एक कान दरवाजे की घंटी
पर तो दूसरा कुकर की सीटी पर….
इतना सब कुछ तो
सदियों से करती आई हो
अब तो इस भाग दौड़ के जमाने में
जिम्मेदारियां कुछ और बढ़ गई
पति की ऑफिस की फाइलें
देवर जी के प्रोजेक्ट्स
और ननदरानी की थीसिस
पति नन्द देवर बच्चे
सभी की टिफ़िन
और सारे कमरों की चाभीयां
सभी का ध्यान रखना है…
एक हाथ गाड़ी की स्टेयरिंग पर
दूसरे में घर के सारे बिल
एक हाथ में खुद के
ऑफिस की फाइलें
तो दूसरे हाथ शॉपिंग की लिस्ट
और तो और
अब तो खुद को फिट रखना
और ग्रूम करना भी
जरूरी काम है
एक नजर KBC पर
तो एक योग चैनल पर
एक बढती बेटी की
सुरक्षा पर तटस्थ
तो एक नजर कुकिंग साइट पर
एक नजर मोबाइल के अपडेट्स पर
भी रखना जरूरी है
एक हाथ में कलम है
तो दूसरे में लैपटॉप भी
क्या तुम्हें विष्णु के समान
सहस्त्र नेत्र प्राप्त है ..?
या तुम्हारे पैरों में पर लगे हैं
क्या है आखिर
तुम्हारी शक्तियों का रहस्य…?
मां दुर्गा के तो दस हाथ सुने है
तुम्हें बीस हैं
तीस या और ज्यादा
क्या कई दुर्गाओं ने मिलकर
अपने दस दस हाथ
तुम्हें सौंप दिए हैं ?
नहीं ऐसा नहीं
बिल्कुल नहीं…
प्रश्न कठिन है
पर उत्तर सरल और सहज
ये उर्जा तुम्हें
तुम्हारे भीतर का प्रेम
प्रदान करता है
तुम्हारा समर्पित भाव
तुम्हें इतना सशक्त बनाता है..
पर हाँ
तुम भी करती हो उम्मीद
तुम भी होती हो अशक्त..
एक बात तो रह ही गई
सभी आभासी हाथों के बीच
तुम्हारे असली दो हाथ
जाने कब और कहां
अपेक्षित हो
गायब से हो गए
पता ही नहीं चला |
जिनको जरूरत थी
एक मजबूत पकड़ की
उंगलियों के बीच
ज़ोर से बंधी
पांच और उंगलियों की
शौक था गुदगुदाने का
किसी गले में झुलने का
चाहत थी मेहंदी और चूड़ियों की
और आदत थी
इन सभी के बीच
इन सबसे छुपके
चुपके से
अपने गालों पर
लुढक जाने वाले
‘मासूम’ मोतियों को
धीरे से मिटा लेने की….
मुदिता रानी ‘मासूम’