स्त्री
ना जाने क्यों ??
मुझसे ही हर सवाल किया जाता है,
हर दफा मुझे ही क्यों ??
कठखड़े में खड़ा किया जाता है,
जो रंग हो गोरा मेरा तो ,
क्रीम पाउडर का कमाल कहा जाता है,
और जो रंग हो सावला थोड़ा तो,
हर जगह से धूतकार दिया जाता है।
जो पहनूं कपड़े लम्बे तो,
सबको गवार नजर आती हूँ,
जो पहनूं कपड़े छोटे तो,
छोटी सोच वालों को भी अत्यधिक अकलमंद पाती हूँ।
हाँ है गुरूर मुझमें ,
मैं घर के सारे काम भी कर सकती हूँ
और समाज में अपना नाम भी कर सकती हूँ,
इस गुरूर को करने चूर- चूर
तेजाब क्यों मुझ पर फेंक दिया तुमने??
क्या हो इतने जाहिल ,
ना शब्द की समझ नहीं थी तुम में??
कलियुग की स्त्री हूँ मैं
उंगलियों पर तुम्हें नाचा सकती हूँ,
ज़िंदगी को तुम्हारी नर्क से बत्तर मैं बना सकती हूँ,
कलियुग की स्त्री हूँ मैं,
महाभारत में स्वयं रचा सकती हूँ
लंका को तुम्हारी आग में स्वयं लगा सकती हूँ।
हो चाहे द्वापर की द्रौपदी ,
या हो निर्भया कलियुग की, दशा एक समान है,
परंतु फरक महज़ इतना सा है
कृष्ण सा ना अब कोई महान है।
आघात हुआ ये देख मुझे,
स्त्री- स्त्री के साथ नहीं,
और जितनी भी बंदिशे लगी हुई है स्त्रियों पर ,
उसमें केवल पुरुषों का तो हाथ नहीं।
पुत्र प्राप्त कर होती प्रसन्न,
पुत्री पाकर खुश नहीं,
जिस दिन होगी स्त्री – स्त्री के साथ,
नहीं होगी कोई स्त्री किसी स्त्री के खिलाफ,
उस दिन होगी क्या ही बात,
यह समाज सुधार जाएगा,
पूरा ना सही आधा ही सही,
समाज स्त्रियों पर प्रश्न तो नहीं उठाएगा।।२
❤️स्कंदा जोशी