बेटियां
मम्मी पापा की परियां होती हैं बेटियां,
ख्वाबों का नन्हा सा आकाश होती हैं बेटियां,
पापा की धन दौलत होती हैं बेटियां,
घर की बरकत होती हैं बेटियां।
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मां का अंश होती हैं बेटियां,
संस्कारों का स्रोत होती हैं बेटियां,
बेटों की तरह परवरिश होने पर,
जिम्मेदारी को बखूबी निभाती है बेटियां।
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परिजनों का ख्याल रखती है बेटियां,
शादी के उपरान्त पति के घर को,
संवारने की कला में निपुण होती है बेटियां।
अपने मां बाप के साथ साथ
सास ससुर को अपने मम्मी पापा मानकर,
उन पर अपना दुलार लुटाती हैं बेटियां।
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भेदभाव के समाज पर प्रहार करती हैं बेटियां,
बेटों के बराबर जिम्मेदारी उठाती हैं बेटियां।
बेटा – बेटी एक समान, इस भाव को जगाती हैं बेटियां।
बेटी है तो कल सुरक्षित है,
इस भाव को बतलाती है बेटियां।
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कोख में खत्म न कर हे मानव,
समाज से गुहार लगाती हैं बेटियां,
बेटी है तो बहु और वंश कायम है,
यही भाव बतलाती हैं बेटियां।
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घर की रौनक है बेटियां,
पापा को पगड़ी हैं बेटियां,
मां का साज सिंगार हैं बेटियां।
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डॉक्टर, इंजीनियर और ऑफिसर हैं बेटियां,
कुशल गृहणी, प्रशासक हैं बेटियां,
समाज में कुशल प्रशासक और,
घर की कुशल गृहणी है बेटियां।
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पापा की आन – बान और शान हैं बेटियां,
शिक्षित समाज के मूल में हैं बेटियां,
घर को स्वर्ग से भी सुंदर बनाने की ताकत,
रखती हैं बेटियां।
पापा को राजा का मनोभाव दिलाती हैं बेटियां।
मां की छवि हैं बेटियां।
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डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।